मंगलवार, 1 सितंबर 2015
कविता-२५४ : "फिर भी क्यूँ नहीं समझते..."
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पत्थरो को ज्ञान देते हो क्यों ____? सागर ने आग ऊगली कभी , या सूरज ने दी शीतलता नहीं न ___ फिर उसने यदि बेबफाई की तो....क...
शनिवार, 29 अगस्त 2015
कविता-२४७ : "राखी का बंधन..."
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मेरी देह से जुडे सीधे हांथ की कलाई में आज के दिन बंधता था एक पीला धागा जो खुलता न था तीन मजबूत गांठो से.... बन जाता था एक नि...
गुरुवार, 27 अगस्त 2015
कविता-२४५ : "अनमोल रिश्ता..."
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कूड़े घर में आई एक आवाज कोई दरिंदा फेंक गया अपनी ही संतान सिर्फ इसलिए उस नवजात की नन्ही देह में वो अंग नहीं था , जिस पर घमं...
बुधवार, 26 अगस्त 2015
कविता-२४४ : "श्रींगार..."
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सुन्दरी ___ तेरे चेहरे पर लिपे पाउडर क्रीम और लिपस्टिक और नाखुनो में रंग बिरंगी उभरे चित्रो ___ ब्यूटी पार्लर की तमाम क्र...
मंगलवार, 25 अगस्त 2015
कविता-२४३ : "सब बेच आये हैं...!!"
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सदियो से ही चलती आ रही बेचने की परम्परा ___ महाभारत में बेचीं गई लाज रामायण में मान कुछ देश के नरेशों ने अपने उसूलो / राज पाट...
सोमवार, 24 अगस्त 2015
कविता-२४२ : "सिसकियाँ..."
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भले ही....कविताये कागजो पर लिखी जाती है ___ आंसू की एक बूंद पर भी मैंने लिखी है कविता फिर तो बंद कमरे में आज रोई है माँ मेर...
रविवार, 23 अगस्त 2015
कविता-२४१ : "यूँ बरसते रहो..."
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बरसना ___ तृप्ति भी देता है और , पीड़ा भी निर्भर है , स्तिथि / परिस्तिथि के ऊपर __ सूखी तपिस से भरी धरा को पावस की प्रथम बरसात...
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