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शुक्रवार, 13 मार्च 2015

कविता-८० : "वेलेंटाइन डे..."


भारतीय संस्कृति के लोग जब...
दीवाली दशहरा ईद छोड़ कर
वेलेंटाइन डे मनाते है...

अपनी धरती पर विदेशी परचम लहराते है
तब हम जैसे लोग समझ नहीं पाते है..
कि क्यों ??

पश्चिमी देशो की उतारन अपना रहे है..
अपने पवित्र त्योहारों को छोड़ अश्लीलता फहरा रहे है..
क्या सोचा है कभी...

जिन देशो से हमने वेलेंटाइन डे आदि त्योहारो
का हरण किया है...
क्या उस देश के बासियो ने त्यौहारों के प्रतीक
प्रेम का अनुशरण किया है...

माना उन देशो में ऊँची ऊँची बिल्डिंग पैसा
आधुनिकता मोटर और कार है.....
परन्तु, प्रेमी प्रेमिका तो ठीक..
माँ और बेटे के बीच भी नहीं प्यार है...

प्रेम तो ठीक..
न दुलार है न अपनत्व है न संस्कार है..
सिर्फ और सिर्फ मारम्मार है...
प्रतिस्पर्धा है..
न रीति रिवाज है न मर्यादा है...

धर्म, रिश्तो मान सम्मान में हमसे आधा है...
और वैसे भी प्रेम को किसी
त्यौहार की जरुरत नहीं पडती...
इसका अहसास ही एक त्यौहार होता है...
वह किसी एक दिन पर स्थिर नहीं होता...

प्रेम का प्रतिपल मजेदार होता है...
जब नहीं था वेलेंटाइन डे..तब क्या प्रेम नहीं था..
प्यार नहीं था.....
था मगर...
अश्लीलता का व्यापार नहीं था..

अरे...
यदि प्रेम देखना है तो भारत में आकर देखो...
देखते देखते आँखे प्रेमी हो जाएगी...
जब तक बेटा घर लौटकर नहीं आता..
तब तक माँ भूखी रहती है...
तब प्यार की परिभाषा खुद ही दिखती है...

बाप के कंधे पर देखोगे उसके लाडले का भार
उसी पल पा जाओगे श्रेष्ठ प्यार..
एक मंगलसूत्र बिंदी..
एक सुहागन नारी का धर्म बताती है...
तब प्यार की बड़ी सी परिभाषा
एक छोटी से बिंदी में नजर आती है...

तुम्हारा एक गुलाब का फूल
अपना प्यार जताता है....
यहाँ एक भाई द्वारा बंधवाया रक्षा सूत्र
जिन्दगी भर बहिन की सुरक्षा का
जिम्मा उठाता है...

माँ भारती के कण को जब कोई दूसरा देश छू लेता है..
उस वक्त यह देश हजारो कुर्वानियां दे देता है...
अब तुम किसे प्रेम समझते हो...
क्यों प्रेम का झूठा प्रदर्शन करते हो...

अतः मित्र..
मनाना है तो वो त्यौहार मनाओ...
जो हमे संस्कृतिक विरासत में मिले है...
वेलेंटाइन डे जैसे दिवस नहीं प्रेम का दर्शन है...
ये तो प्रेम के आड़ में अश्लीलता का प्रदर्शन है...!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’________

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