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रविवार, 29 मार्च 2015

कविता-९६ : "एक इन्सान की तरह..."


दीवारे गन्दी हो जाती है
रंग रोशन फिर से साफ़ कर
देती है गंदगी दीवारों की
काश...
कोई रंग ऐसा भी होता
कि... इन्सान के ह्रदय में
लगा भंगुर, गंदगी
साफ़ हो जाती
और... इन्सान हो जाता
फिर से एक इन्सान की तरह....!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________

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