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शुक्रवार, 20 मार्च 2015

कविता-८७ : "जिंदगी...."

आज सोचा देखू जिंदगी को
बड़ी खूबसूरत सी दिखी..
पहले पाषाण पाषाण ही दिखता था
आज एक प्यारी सी मूरत सी दिखी...

आज सोचा देखूँ जिंदगी को..
बड़ी खूबसूरत सी दिखी...

मौत मौत ही है..
चंद धडकनों का बसेरा..
एक वीरान निशा अंधियारी सी
न शाम ना ही सबेरा...
जिंदगी जीकर देखी जियो तुम भी
तब एक जरुरत सी दिखी....

आज सोचा देखूँ जिंदगी को
बड़ी खूबसूरत सी दिखी...

धड़कने बोझ दिखती थी
सांसो का रंग था ओझल..
पा ह्रदय के सुर को
हर कली खूबसूरत सी दिखी...

आज सोचा देखूँ जिंदगी को
बड़ी खूबसूरत सी दिखी..

हर प्यारी तस्वीर थी निहारी
रंगों पे फेरी थी आँखे..
बिन सिंदूर बिन बिंदिया..
वो सुहागन बदसूरत सी दिखी..

आज सोचा देखूं जिंदगी को
बड़ी खूबसूरत सी दिखी...!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’________

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