मेरे छटे या सातवें
जन्मदिवस पर
दी थी तुमने
एक चाकलेट
उपहार स्वरुप..
चाकलेट तो शायद
खा ही ली होगी
उस समय मैंने...
पर !
उस चाकलेट का रेपर
आज तक रखा है
मेरी डायरी के
बीचो बीचो..
सुरक्षित..
मधुर स्मृतियों के साथ
जैसे कलेजा रहता है
शरीर के मध्य में...
देखता हूँ....
उस रैपर को जब भी
पहुँच जाता हूँ
मै...
अपने छटे या सातवें
जन्मदिन पर ही
जहाँ...
एक लकड़ी की टेबिल पर
माँ के हाँथो से बना
बगैर क्रीम का केक
और अगल बगल में
मेरा पूरा परिवार
उनके मुस्कराते हुए चेहरे
कुछ लाल पीली टोपी लगाये
हुये मेरे दोस्त...
और नये सफ़ेद कपड़ो में
परी की तरह
मेरे सामने खड़ी तुम
तालियाँ बजाती हुई...
दिखता है सब
वो मधुर यादें
उस चाकलेट के
रेपर में ही...!!!
_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________
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