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शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2015

कविता-४९ : "समझो मेरे अरमानों को..."

मेरी एक छोटी सी हंसी पर
तुम्हारी मधुर मुस्कराहट
मेरी उदासियो की शीतलहर पर
तुम्हारी रिमझिम रिमझिम चाहत
उधडे उधडे दिल को मेरे
कब डोगे प्यार से सिल के.....
न जाने कब पूरे होंगे अरमान इस दिल के...

मेरी तरसते तड़पते कानो में
तुम्हारी रात रात भर बाते
दिन भर कि  बेचेनिया
प्रणय भरी वो राते...
मेरी उदासी
तुम्हारी शरारत जरा सी
रूठना मेरा
मनाना तेरा
श्वेत रंग हो जाता है जैसे
श्वेत में श्वेत ही मिल के
न जाने कब पूरे होंगे अरमान इस दिल के

उलझन मेरी
धड़कन तेरी
आहें मेरी
बाहें तेरी
दर्द मेरा
मरहम तेरा
जिन्दगी के कठिन मोड़ पर
नदी हो चलती है संग साहिल के
न जाने कब पूरे होंगे अरमान इस दिल के...!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________

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