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गुरुवार, 12 फ़रवरी 2015

कविता-४८ : "तुम्हारे लिये... मेरा सृजन..."


वो लिखती है तो
कमेंट्स एवं लाइक की
बरसात हो जाती है
और जब लिखता हूँ में
तो कमेंट्स एवं लाइक का
पतझड़ अषाढ रहता है
फर्क लिखने और कलम की
गहराई का नहीं है केवल
शव्द उनके भी है शव्द हमारे भी
अंतर सिर्फ इतना सा
वो लिख...ती है
और हम लिख...ते है...!!!



लिख रहा हूँ में
आज ये कविता..
अंतिम...

निश्चित ही ..
आखिरी शव्दावली है
ये..
इस साल की...

सच, इस साल और कोई
सृजन नहीं करेगी
मेरे लेखनी...

लिखने के तुरंत बाद ही..
तुम्हारे पढने का सदेव ही
इंतजार रहा है मुझे...

लिखने के कुछ दिवस बाद भी
तुम्हारा पढना मंजूर नहीं था हमे
कभी...
पर..
इस अंतिम कविता में
बहुत समय दिया है तुम्हे..
पुरे एक साल बाद..
अगले साल तक भी...
पढ़ लेना .
पर पढना जरुर...

और हमेशा की तरह
कमेंट जरुर करना..
बहुत समय है तुम्हारे पास...
क्योकि...
साल भर बाद भी
तुम्हारे कमेंट से ..
ये रचना शायद..
अमर हो जाये..
सालो सालो के लिए...!!!
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______ आपका अपना : 'अखिल जैन' ______


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