पंछियों के पंख से भी बड़े..
जो उड़ा ले जाते है कहीं भी
कभी भी.....
पंछी उड़ते है
होंसलो से
गगन तक ,
घोंसलो से....
पर...
शब्द उड़ते दूर तक..
हमसे तुम तक...
तुम और हम
हां, हम और तुम ..
ये सागर सी गहराई
लिये स्नेह
जुड़ा ही था शब्दों से ही
कभी ...
और हो गये तुम हमारे
है न...
फिर !
कैसे न कहूँ क्यों न कहूँ
जिन्दगी हो तुम..
और जिन्दगी से प्यारे भी..
सच ...शब्द मै हूँ तो
पंख हो तुम....
शब्दों के पंख देखें हैं कभी....
मैंने तो देखे है ये पंख
अभी अभी...!!!
-------------------------------------------------------------
_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें