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सोमवार, 16 फ़रवरी 2015

कविता-५३ : "प्रिये तुम..."

भूख में आस जोह कर
प्यास में नेह भर कर
उसे कर लिया अंगीकार
ताकि अखंड हो सके
तुम्हारा सुहाग,तेरा प्यार
नमन तुम्हारी इस इबादत को....

स्मरण हो आता है
जब माँ बनकर मुझे
खिलाती-पिलाती
अपनी दुनिया सजाती हो
नमन तुम्हारी इस चाहत को...

कौंध जाता है
जब घंटों सजती हो
दर्पण को निहार
क्योंकि मुझमें
तुम देखती हो
अपना सौन्दर्य
अपना साज-निखार
नमन तुम्हारी इस सजावट को...

मैं मांगूंगा देव से आज
तुम्हे अनंत काल ले लिए
ताकि मेरी सम्भाल
और मेरे जीवन की
दुआ करने के लिए
तुम हमेशा रहो
मेरे साथ

मनु...!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________


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