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गुरुवार, 26 फ़रवरी 2015

कविता-६५ : "भीड़ का सच..."

चौराहे पर लगी भीड़
भीड़ में घिरा आदमी...
आदमी का गुस्सा उस आदमी पर
जिसको लग गई स्कूटर
एक खूबसूरत लड़की की
कुछ, बेचारे गिरे आदमी को
मार रहे थे
तो कुछ खूबसूरत लड़की का
सामान उठा रहे थे...

चौराहे पर लगी भीड़
भीड़ में घिरा आदमी...
आदमी का गुस्सा उस
बूड़े आदमी पर
जिसकी साइकिल की
टक्कर लग गई धोखे से
एक महिला को
बूढ़े आदमी को जमी पर छोड़
महिला को उठाते बीस तीस लोग...

चौराहे पर लगी भीड़
भीड़ में घिरा आदमी...
आदमी का गुस्सा उस नादान बच्चे पर
जो दौड़ता हुआ भिड गया
उस सुन्दर नौजवान कन्या से
बच्चे को मारे दस बीस चांटे
और मेडम जी को हाँथ पकड़ कर
कपड़ो की धूल , झडा कर
दिखाते हमदर्दी लोग सारे..

चौराहे पर लगी भीड़
भीड़ में घिरा आदमी..
आदमी की सोच
सोच की भीड़
और भीड़ का सच
सिर्फ आदमी...!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________

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