घट गया जो कट गया है
शेष अब कुछ भी कहाँ...
तू लाख कोशिश कर ले भले ही
कब लौटी है जाने के बाद निशा
जब साथ थे, तेरे थे अपने
मोल मेरा,पहचाना नहीं
अब दूर के अहसास को
क्यों लगाये हो सीने से तुम
सब हो गया ,सब खो गया
मत शामिल करो फिर से अभी
दूर हो, मजबूर हो
पर खुश हूँ ,बहुत तेरे बिना..
नियति ही है जो मै, अनमोल था
पर अब बचा कुछ भी नहीं
मान लो और जान लो
नियति के पार कुछ भी नहीं...
कुछ भी नहीं...!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल
जैन’_________
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