तुमसे बिछड़ने के
बाद...
प्रति रोज, प्रति पल
ढूंढता हूं
पर्वतो में जाकर
उसकी छोटी छोटी
गुफाओ में..
ऊँचे ऊँचे वृक्षों
पर बने
पछियो के घौंसलो
तक...
आकाश की खुली वादी
और वसुंधरा के
प्रत्येक कोने में...
पर...
नहीं मिलता वह
जो समेटे रखा था
तुमने अपने सीने में
मेरे लिये सुरक्षित
सदा...
तुम्हारी हंसी आंसू
और शव्दों में
छिपा होता था वह
मेरे लिये...
ढूंढता हूं में...
एक आंसू के गिरने पर
लगा लेती थी तुम
अपनी नाजुक हंथेली
की कही ये गिर न
जाये जमी पर
क्योकि..
जमी से उठकर ही
प्यार किया है हमने...
ऊष्मा से भरा चुम्बन
हर रात
मिलता था
फ़ोन पर ...
जो बताता था समर्पण
तुम्हारा..
प्यार के लिये...
घंटो तुम्हारी
बाते..तुम्हारे सन्देश..
पर अब छिन गया है
अधिकार मेरा..
तड़पता हूँ हर रात ..
नहीं मिलती वह गदेली
रोकने मेरे आँसू..
और फिर सुबह
चला जाता हूँ
वही पर्वतो की गुफ़ाओ
में..
वे घौंसले वे
वृक्ष..
सभी जगह
पर नहीं मिलता यहाँ
..
तब जानता हूँ..
शायद..??
छिपा के रखा हो सीने
में..
हमेशा की तरह..
की समय के आने पर..
मेरे थक जाने पर..
गिरूंगा में जमी
पर..
और थम लोगी तुम..
तुम्हारो गोद.
मेरा सूखा दामन..
मेरे थके कदम..
रोती आखें..
खिल जाएगी देखकर
तुम्हे..
और भर दोगी..
फिर..
तुम इसे..
जिंदगी से..
एक दिन...!!!
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_______आपका अपना : 'अखिल जैन'_______
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