तेरे ह्रदय की पीर
गर सुन पाता
तो पीर फिर
कहाँ रह जाती...?
नहीं सुन पाता हूँ
शव्द पीड़ा के
क्योकि...
तुम्हारी मुहब्बत
है गूंगी
और...
मेरे अहसास
शायद..... बहरे...!!!
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अजीब हूँ पर जीव हूँ
निर्जीव नहीं..
वर्ना कहाँ है
शेष
जीवंतता
जिन्दा दिलो में
भी...!!!
_________आपका अपना ‘अखिल
जैन’_________
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