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गुरुवार, 19 फ़रवरी 2015

कविता-५६ : "हाय... ये कैसी उलझन हैं ???"

कलम भी है और कागज भी
अहसास से तो भरा ही
रहता हूँ...

सिर्फ तुम नहीं हो आज
मेरे पास...

सोच के भी नहीं लिख पा रहा हूँ
तुम आज आ नहीं सकती

और सृजन को दूर कर नहीं सकता
अब क्या लिखू कैसे लिखूं

जब नहीं आज मेरा मन है
हाय...
कैसी ये उलझन है...!!!

कागज को उठाया ही था
कलम भी पास थी
और दवात भी ..
तुम आ गये तभी...
मुस्कराये..
कसमे खाई..
हाँथ थामा..
रूठे..
टूटे..
वादे तोड़े..
और छोड़ दिया तन्हा..
फिर क्या ??
देखा कागज पर
लिखा था..
अफसाना जिन्दगी का...

सच !
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________

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