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सोमवार, 16 मार्च 2015

कविता-८३ : "गुड्डे-गुड़िया की शादी...!!!"

मिट्टी के गुड्डे गुडिया
रंगीले कपड़ो से उनका श्रंगार
हल्दी रोली से उनका टीका
आटे की छोटी छोटी अठबाई
कुछ मिष्ठान पकोड़े...

फिर उनका संस्कार विवाह..
फेरे बरगद के पेड़ के...
सच... सोचकर ही पहुँच जाता हूँ
उसी मदमस्त बचपन में...


जहाँ नहीं चाहते बड़े होना
कभी...
ये आनंद की अनुभूति ही
लौटा देती है मेरा
सब कुछ...!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’________

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