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मंगलवार, 3 मार्च 2015

कविता-७० : "हमेशा हमेशा के लिये..."


विशाल सागर में रहती है

एक मछली छोटी सी....
सागर अमर है, अमिट है और
अनंत गहरा भी
पर!
मछली अमर अनंत नहीं.....
जन्म और मरण की कड़ी में
जीवन स्थापित करने की चाह
चलने का साहस और होंसला
लहरों से कटने ,दौड़ने और
तैरने का संग्राम ही
समग्रता जीवन की....
ऊँची ऊँची उठती लहरों
अथाह गहराई
सनसनाता वेग और
भक्षण करने वाले विशाल जलाचार जीव
के मध्य मछली का मात्र
साहस और चाह ही
राह है साँसों की....
अल्प विराम भी तनिक विश्राम भी
जीवन के मधुर गीत को
म्रत्यु की गोद में 
पंहुचा सकता है
जीवन का पर्याय
मछली का साहस और चाह ही है
ये दुनिया भी
एक विशाल सागर ही है
और हम एक छोटी मछली
दुनिया की अनंत गहराई में
छोटे से प्राणी हम
विचरण करते है गतिमान रहते है
हमारी सोच चाहत साहस और होंसला
ही जीवन की डोर को बांधे रहते है
साँसों के मधुर संगीत से
और हमारा रुका वेग और
मानसिक संवेग
छोटी मछली की तरह
विलुप्त हो जाती है
अनंता अनंत दुनिया रूपी
विशाल सागर की गहराई में
हमेशा हमेशा के लिये....।।
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________

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