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शुक्रवार, 6 मार्च 2015

कविता-७४ : "आखिर कब तक...???"


न जाने क्यों ??
कभी खुश नहीं होता है आदमी
जिन्दगी के पड़ाव पर...

समय की नाव पर
उलझा रहता है
काम में धाम में...
मित्र में शत्रु में
अपने में पराये में
लाभ में हानि में...

अनभिज्ञ होता है शायद ?
डरता है सत्य से...
प्रकृति के कृत्य से...
जानकार भी नहीं सोचता
जीवन का सार...
समय की मार...

मौत से बेखबर चलता रहता है..
वह निडर.....
कब तक...
आखिर कब तक...?
??
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________

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