शुक्रवार, 27 मार्च 2015
कविता-९४ : "मुझ जैसा ही..."
मै कवि नहीं हूँ
कभी कभी हूँ
जो ह्रदय के
अहसासों को सजाकर
प्रयत्न करता हूँ
लिखने जैसा ही...
कविता
रचना
तो पता नहीं...
पर !
हो ही जाता है
सृजन....
मुझ जैसा ही...
!!!
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आपका अपना ‘अखिल जैन’_________
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