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गुरुवार, 19 मार्च 2015

कविता-८६ : "समाज तू है कौन ???"

समाज तू है कौन ?
मै, ये और वो...
और इस भीड़ में खड़ा
हर वो इन्सान भी जो
अपनी शर्ट की कॉलर पर
समाज का बिल्ला लगाये
चूर है अभिमान में...
बहुत सारे दिमाग बहुत सारे
हाँथ पैर और शरीर...
झुंड ही है विचारो का...

जो अपनी उर्जा से शक्ति से
नहीं रोक पाता अपराध शोषण
और हर पल प्रताड़ित हो रही नारी का
यौन शौषण...उत्पीडन..बलात्कार..

दो हाँथ दो पैर दो आँखे एक दिमाग
और एक कोमल देह ..
कभी खुद मर जाती है तो
कभी मार दी जाती है...

और ये विचारो.. लोगो का झुण्ड
समाज सिर्फ मौन 
या थोडा सा प्रदर्शन
शब्द बाण... संवेदनायें... 
पर हांसिल होता उससे
लगभग शून्य ही...!!!

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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’________

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