Powered By Blogger

शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2015

कविता-६६ : "यादों का मधुर अंकुर..."

एक दिन
हुआ था सबेरा
जगमग जगमग रोशनियों के साथ
लाल तेज आभा लिये, रवि
गगन के चीर को भेदता हुआ
वसुंधरा के आगोश में
धरती की नदियों, सागर की लहरों
को आग लगाता हुआ
पुनः
बापिस अपने आलय में
क्रम की परम्परा का निर्माण करता हुआ
धरती के आगोश से होकर जुदा
स्मर्तिया ही दे गया
शेष!
यादो का मधुर अंकुर
आयेगा पुनः
एक दिन...!!!
-------------------------------------------------------------
_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें