एक दिन
हुआ था सबेरा
जगमग जगमग रोशनियों के साथ
लाल तेज आभा लिये, रवि
गगन के चीर को भेदता हुआ
वसुंधरा के आगोश में
धरती की नदियों, सागर की लहरों
को आग लगाता हुआ
पुनः
बापिस अपने आलय में
क्रम की परम्परा का निर्माण करता हुआ
धरती के आगोश से होकर जुदा
स्मर्तिया ही दे गया
शेष!
यादो का मधुर अंकुर
आयेगा पुनः
एक दिन...!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________
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