तुलसी...
घर के आँगन से
लोगो के दिलो तक...
तू पूज्य रही और पावन
भी...
लोगो के दिलो तक...
तू पूज्य रही और पावन
भी...
सदियों सदियों से तुमने
महकाया घर आँगन
और पूजी जाती रही तुम....
पर तुलसी अब कहाँ मिलती तुम
शहरो में आधुनिक बंगलो में
घरो में आंगनो में...
घरो के साथ शायद
मन / ह्रदय सभी लुप्त ही हो गई
क्यों न हो ?
सभ्यता संस्कृति और धर्म
के साथ ...
इन्सान भी तो लुप्त हो गया
आदमी के अन्दर से....
इस बदलाव ने बदल दिया
तुलसी का अस्तित्व
और अब आँगन में तुलसी
नहीं गुलाब है...
क्योकि आदमी के अन्दर दिखावे
का भाव है...!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________
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