शनिवार, 2 मई 2015
कविता-१३१ : "सिंदूर..."
तेरी मांग में भरा था...
एक सिक्के से लाल सिंदूर
सिंदूर ही था...
कोई लक्ष्मण रेखा नहीं जो
बांधती तुझे हरदम
मर्यादाओ में...!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________
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