मंगलवार, 26 मई 2015
कविता-१५४ : "उनकी नजर से..."
भीड़ की धुन्ध में
सब.. हाँ.. सब
कहाँ ,सबके लिये...
पर जो है जिनके लिए
वो ,कहाँ बच पाता
उनकी नजर से...
ये शब्द भी कहाँ बचने वाले
अब उनकी और
तुम्हारी नजर से.....
देख लेना...
सच...!!!
-----------------------------------------------------------
_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें