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बुधवार, 27 मई 2015

कविता-१५५ : "नया प्रयोग कविता में..."

जहाँ तक काव्य को मैंने जाना है कविता एक प्रवाह के साथ चलती है। एक उचित क्रम और अभिव्यक्ति ही कविता को पूर्णता देते है।
इस कविता में एक नया प्रयोग है जिसे आप पढ़कर मेहसूस करेंगे।


इसे पहले आप ऊपर की पंक्ति से नीचे की पंक्ति तक पढ़े।
फिर नीचे की पंक्ति से ऊपर की पंक्ति तक पढ़े।





वो मर गया...

आत्महत्या की थी उसने

बेबफाई हुई थी उसके साथ

प्यार भी बेपनाह किया था

खूब आँखे मिलाता था
देखता था छिप छिप कर

थी बहुत,
उम्र के नाजुक दौर में
'मिलन की आस'
एक किशोर लड़के को...!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________

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