तुम अपने घर में
मैं अपने घर में
तुम्हारी और मेरी तासीर
भी अलग...
घर और घर का रंग रोशन
भी अलग...
पर घर की दीवारे एक ही
जैसी है
जो खड़ी है वर्षो से
ये सोचकर की हमारे हिलने पर
ध्वस्त हो जायेगा ये मकान
और शेष
कुछ न बचेगा...
काश इन दीवारो से ही
लेकर सीख खड़े होते
हम भी एक चाह लिये तो
रहते सुरक्षित मकान
के मानिंद
और न ध्वस्त हो पाता
हमारा स्वप्न...!!!
-----------------------------------------------------------
_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें