हूँ तन्हा बहुत
कर लू यकीन अब तो
रूठने की त्याग निद्रा
उठ जाओ अब
और तन्मयता से कर लो
अंगीकार
हर अहसास को मेरे....
फासलों की दीवार खड़ी है
मानता हूँ पर
लांघने का हुनर पता है तुम्हे
जानता हूँ....
मेरे हर गीत के आखर
चाहते है छूना तुम्हे
अंतस का मरुस्थल पर
देकर नेह की बारिश
कर दो पुनः
हरियाली प्रेम की...
मन मयूर झूमने आतुर है
संग तुम्हारे अब
आओ न
दिल ने पुकारा है तुम्हे...!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________
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