मेरे अरमान को तुम
हां तुम भी
कुचल दो मसल दो और
तोड़ मरोड़ दो.....
चड़ा दो बुलडोजर
जैसे रोंद देता है अनीतिगत या
नियम विरुद्ध दुकानों मकानों पर
मैं भी तो तुम्हारे नियमो नीतियों
के विरोध में ही हूँ
सदा से
दुनिया में रहते हो तो
निभालो अपना धर्म
तुम भी...
मुझे क्या .....
हमेशा की तरह
दे जाऊंगा एक और
कविता
पर वो नहीं होगी टूटी फूटी
मेरी तरह...
यकीनन...!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________
कविता नहीं मेरी तरह टूटी-फूटी... आह भी वाह भी....
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