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मंगलवार, 5 मई 2015

कविता-१३४ : "आलोचना शब्द का भक्त हूँ मै..."

आलोचना शब्द का भक्त हूँ मै
प्रेम करता हूँ...
इसके स्वरुप से...


तुम हां तुम..
मेरे मन से तन से
अन्दर से ,बाहर से
दैनिक ...भौतिक...दैविक
और सभी प्रकार से
खोजना
मेरी सभी बुराइयाँ
और करना विरोध
पर एक अनुरोध...


मेरी कुछ अच्छाइयाँ भी
गिन लेना
फिर करना प्रतिरोध
मै तुम्हारे साथ ही था
और साथ रहूँगा हमेशा ही
ध्यान रखना...
आलोचना शब्द का भक्त हूँ मै...!!!

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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________


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