बड़ी उलझी हुई सी वो
नहीं सुलझी हुई सी वो
है आलम तनहाइयो का
नहीं थी पास में वो....
कभी बेचेन करती थी
कभी आगोश में लेती
नहीं थी मेरी साँसों में
कभी बर्बाद सा करती....
उदासी सी छाती थी
कभी गिरते थे मेरे आंसू
नहीं कलम साथ भी देती
शिकायत जिन्दगी को थी...
नहीं मै भूल भी पाता
नहीं मै पास भी पाऊ
शरारत जिन्दगी की ही..
ख्यालो में वो हरदम
बड़ी तड़प थी यारो
नशे में मेरी हालत सी
हाल ए मदहोशी में
एक शिकायत सी थी
बड़ी तन्हाई में गुजरी
उसका जिक्र उसकी बाते
नहीं मै भूलता यारो
वो सर्दी की राते...!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________
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