जिन्दगी का चिराग बुझ गया है
आज साँसे रुक गई है...
धड़कने थम गई है
रुक गया है ये जीवन सागर
टूट गई ये माटी की गागर
माटी आज माटी में मिल गई...
आत्मा शरीर से निकल गई
भूत / वर्तमान
इतिहास बन गया...
भविष्य सिर्फ एक राख बन गया
आग की लपटे..
पंचतत्व की और जाने लगी
पिछला जीवन
पिछली यादें मिटाने लगी
यह कोई खेल नहीं...
पंचतत्व की और जाने लगी
पिछला जीवन
पिछली यादें मिटाने लगी
यह कोई खेल नहीं...
प्रकृति का एक केवल...
एक ही सत्य है...
मौत है इसका नाम
इस पर...
मानव जाति का नहीं वश है...!!!
-----------------------------------------------------------
_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________
Bhut sunder Rachana
जवाब देंहटाएंBhut sunder Rachana ki
जवाब देंहटाएं