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मंगलवार, 11 अगस्त 2015

कविता-२२९ : "जिंदगी ख्वाबों से नहीं चलती..."

अगर____
चलती होती जिन्दगी ख्वाब से
तो दुनिया की
तस्वीर ही अलग होती
न कोई होता
भिखारी
न होता कोई रंक
हर तरह होते आलीशान बंगले
सोने के महल
गरीबी गरीव की झोपडी
सिर्फ मिली इतिहास
के पन्नों में
मौत भी न होती
गम भी न होते
ख्वाब देखने से ही गर हो
पाते सारे अरमान पुरे
पर
सच तो सच है
और
जिसमे ख्वाबो की
गुंजाईश कहाँ...!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________

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