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बुधवार, 5 अगस्त 2015

कविता-२२३ : "प्रेम की डोरी..."

सात फेरो में बंधने
उपरांत भी
एक ही कमरे में रहने वाले
दो लोग...
अलग अलग रहते है
पर दो दूर देशो में
रहने वाले
दो अलग अलग लोग
एक ही होते है

देह का मिलना सब कुछ नहीं
पर प्रीत की डोर
सब कुछ...!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________

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