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सोमवार, 3 अगस्त 2015

कविता-२२१ : "सपने हुये साकार..."


सपने हुए ये साकार
मिल आकर
आओ.... ख़ुशी मनाये.....

फूलो से जैसी सजी
इमारत
पूरी हो गई सबकी
चाहत

कर ले मिलके ही
सत्कार

आओ..... दीप जलाये

ये हवाये क्यों है
खिली खिली
रंग लुटाये अब
तितली...

हो रंगो की....ही
बौछार

आओ... गले लगाये...

मदहोशी सी छाई है
कोई शाम
सुहानी आई है

चेहरे है सब खिले
हुए
दिल भी दिल से ही
मिले हुए

प्रेम पर्व सा....ही
त्यौहार
आओ.. मिलके मनाये...!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________

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