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मंगलवार, 4 अगस्त 2015

कविता-२२२ : "प्यास कैसी-कैसी ???"


प्यास कैसी ये जगी है
नीर सागर पास
किंतु
हांथ में बर्तन नहीं है...

सोच लू की हांथ अंजुरी
पर नहीं है साथ
यह भी
गदेली जख्मो से भरी है

न हो जब रेखा हमारी
हर ख़ुशी ही
दूर लगती..

साथ पूनम का पाकर
रागिनी ज्यो
दूर भागती...

जंगलो के बीच हूँ पर
पर नहीं
चन्दन नहीं है...

मेहँदी वाले हांथ देखो
है पिया भी
साथ देखो...

लाल रेखा बीच माथे
हांथ में
कंगन नहीं है...!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________

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