भरकम बारिश के आगोश में
पैदल इंसान
को बचा लेती छतरी
तर बतर भीगने से…
उसकी यादों की
बारिश ने भी
जिन्दगी का मार्ग बाधित
किया
जो चलने तो ठीक
हिलने भी नहीं देती
काश !
कोई छतरी होती यादो की भी
जो बचा लेती मुझे
भीगने से
तेरे विरह के नीर से…
काश…!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________
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