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सोमवार, 17 अगस्त 2015

कविता-२३५ : "सावन बरस करत अभिषेक..."


जटाओ में गंगा , गंगा में पानी
पानी पवन उड़ाये
मेघ बने ..जब ताप बढे तब
झूम झूम के गाये
झूम झूम के आये बदरी
सावन बरस करत अभिषेक
बूँदों में मिठास है कितनी
इन रंगो के भी रंग अनेक
चटक रंग में हरियाती ये
फसलें जब लहराती
गीत नेह के गाती ऋतुएँ
सबका मन हर्षाती
हर्षाता ,हो मस्त मयूरा
अपने पंख उठाये ___
मिट्टी -पानी सोंधी खुश्बू
साँसों में भर जाती
कल- कल बहती नदिया भी
तो मीठा शोर मचाती
इन आवाजो में जैसे
ही शंख हजारो बजते
तट पे सुन्दर खेल-खिलौने
झूले ,मेले ,लगते
इन मेलो पर सजी दुकाने
गुड़िया शोर मचाये____
सावन आता-मीठी यादें
रीति -रिवाजे लेकर
पीले धागे में गुँथता है
साधा नेह उमड़कर
संबंधो की डोर निराली
सब रिश्तों में प्यारी
राखी बांधे भैया को
लगती बहिना है प्यारी
प्यारे बंधन में प्यारा ही
सावन खूब रसाये...!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________

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