तुम्हारी देह से लिपटी
केश ललाटो
पे टपक रही थी एक बूँद
पानी की
गिरे जमी पर इसके पहले
ही थामने हजार हाँथ
जैसे अमृत बँट रहा हो धरती
पर
दूर उस कोने में एक बूढी
अम्मा
के आंखो से भी
कई बूंदे टपक रही
आंसुओ की
जैसे सदियो से ही ये रिसाव
ही जिन्दगी
पर आज तक कई क्या
दो हाँथ भी न आये
थामने
आज जाना____
आंसू वाकई खारे है...!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________
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