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शनिवार, 15 अगस्त 2015

कविता-२३३ : "आओ आज़ादी का जश्न मनाये..."

चढ़ गया सूरज
फहरा झंडा
गोल है चश्मा हांथ
में डंडा
डंडा थामे इंसा के अब
सब मिलके ही गुण गाये
आजादी का जश्न मनाये

काली रात को भूल कर साथी
दीप जलाओ प्रेम की बाती
उजयारो से जोड़ो
नाता
सुख का सूरज राह
दिखाता
इन राहो पर चलके
दूजो को भी राह
दिखाये
आजादी का जश्न मनाये

नफरत के कारागाहो में
चाहत कब से
तड़प रही है
बीच सड़क पे लुटती
नारी
राहत कबसे सिसक
रही है
भूखा नंगा बचपन मांगे
पेट भर अब
खाने को
अन्न उगा कर देने वाला
तरसे अब
दाने दाने को
इन दानो को चुनकर
भूखो तक हम
अब पहुंचाए
आप सब मिलके प्यारे
आजादी का जश्न मनाये__

मातृभूमि के खातिर जिनने
अपना सबकुछ
बार दिया..
उन वीर शहीदों को हम
सबने देखो क्या
उपहार दिया
तस्वीरो पे माला देके
नहीं कर्ज चूका है उनका
इस मिट्टी के कतरे
कतरे में खून
बहा है जिनका
उस मिट्टी को हम
नमन करे
और गीत शहीदों
के गाये
आजादी का जश्न मनाये…!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________

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