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शुक्रवार, 10 अप्रैल 2015

कविता-१०८ : ".क्या है प्रेम...?"

प्यार तो करती ही हो
भले न कहो ये बात है अलग...

अब भला कहने की भी जरुरत क्या
क्योकि शब्द..आवाज.. और दिखावे
से तो दूर ही है प्रेम....

अहसासों की निः शब्द पर्णकुटि में
अथाह गहराई में बसता है...

प्यार ...जो मौन ही रहता है
बिल्कुल तुम जैसा ही...!!!

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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________

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