सोमवार, 20 अप्रैल 2015
कविता-११८ : "एक ही मन..."
'गमन' और 'आगमन'
दोनों शब्दों में अंत में 'मन' है
और ये मन ही है...
जो शायद !
गमन में पीड़ा
और आगमन में
देता है ख़ुशी...!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________
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