मंगलवार, 14 अप्रैल 2015
कविता-११२ : "मै ओर मेरी कलम..."
मै ओर मेरी कलम
दूर नहीं हो पाते चाहकर भी....
हम दोनों एकदूसरे के अनुयायी है
ये मुझे निर्मित करती है...
और...
मै इसके प्रति समर्पित...!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________
1 टिप्पणी:
Hayat Singh
17 जून 2015 को 4:37 am बजे
समर्पण ... बना रहे... वो भी निस्वार्थ.....
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