हो गये बहुत दिन अब...
अच्छे दिन भी तो
आ गये भला
लिखना ही होगा बेहतर...
लिखना ही होगा बेहतर...
खुद के लिये और तुम्हारे लिये भी
क्योकि तुम दिल से होते हुए
आते हो दिमाग पर...
और दिमाग से विचारो के संग
घुलकर अहसासों में आ बैठते हो
कलम पर....
और बहने लगते हो नीली स्याही संग
श्वेत कागज पर...
और उकेरे हुए आखरो में तुम्हारा चेहरा/
सम्पूर्ण तुम ही..
जैसे सागर की लहरों पर
वक्त की उँगलियों के निशान...
सृजित हुए आखरो में जो
दिखता है.. वह ही होता होगा
कविता या कोई शब्द श्रंगार...
पर मेरे लिये सिर्फ और सिर्फ
तुम... सिर्फ तुम...
हां तुम ही...
और तुम में मै खुद
और खुदा मेरा...
जिससे सफल हो जाता है
लिखना मेरा...!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________
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