गिरते हुए अश्रुओ को
थामा था जिन नाजुक सी हथेलियों ने
वो तुम ही थे....
मेरी गूंगे मौन के दिये थे जब
साहस के स्वर
वो भी तुम ही थे...
मेरी अधखुली आँखों में पल रहे
सपनो को
हकीकत में बदलने वाले
सिर्फ तुम्ही थे...
मेरी उदगारो की नीले स्याह को
कागज पर सवारने वाले
तुम ही थे...