Powered By Blogger

सोमवार, 13 अप्रैल 2015

कविता-१११ : "सपेरे...."



सपेरे...
निकाल लेता हूँ तू जहरीले दांत

नाग के...

पश्चात ही ले जाता है दरवाजे दरवाजे
नाग को इंसानों के पास...

ताकि रहे इन्सान सुरक्षित 
नाग के जहरीले दंश से...

काश निकल जाते ये जहरीले दांत
आदमी के भी, कुछ ही दिनों के लिये
तो दूसरा आदमी भी होता सुरक्षित...

और न डंसा जाता .. 
आदमी से ही....
कुछ दिनों के लिये ही सही...!!!
-------------------------------------------------------------

_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें