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गुरुवार, 30 अप्रैल 2015

कविता-१२८ : "अफसाना जिंदगी का...."


कागज को उठाया ही था

कलम भी पास थी
और दवात भी ..

तुम आ गये तभी...
मुस्कराये..
कसमे खाई..
हाँथ थामा..
रूठे..
टूटे..
वादे तोड़े...
और छोड़ दिया तन्हा..


फिर क्या ??
देखा कागज पर
लिखा था...
अफसाना जिन्दगी का...
सच !!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________

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