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गुरुवार, 9 अप्रैल 2015

कविता-१०७ : "तुझे प्यार कर रहा हूँ मै... "


मैंने तुझे जग से माँगा
नहीं मिला...

फिर
सब से माँगा
नहीं मिला....

वहां से माँगा
नहीं मिला...

फिर रब से माँगा
अभी तक नहीं मिला...

पर !
अभी भी मिलने की आस कर
रहा हूँ मै...

किसी टूटते तारे की तलाश
कर रहा हूँ मै...
हाँ...
तुझे प्यार कर रहा हूँ मै...!!!

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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________

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