Powered By Blogger

गुरुवार, 2 अप्रैल 2015

कविता-१०० : "क्या हैं न्याय???"



क्या है न्याय...???

इन्सान के मौलिक अधिकारों
का संरक्षण / प्राप्ति...

या सिर्फ इन्सान द्वारा
निर्धारित एक तंत्र...

जिसमे नियमो के दायरे
में न्याय की गुहार लगाता
उसे पाने वह
घूमता है दर बदर
और न्याय सिर्फ बैठा होता है
एक तराजू में...

और हँसता रहता है
इन्सान पर...!!!
-------------------------------------------------------------
_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें