काश, लिख पाता तुम पर
तो शब्द शब्द
महका देता तुम्हारे चरणों
में ही
पर चाह कर भी
लिख नहीं पाता
बंध जाता हूँ ___________
तुम अखिल ब्रह्मण्ड की
जनेता
तुम सृष्टि निर्माता
तुम विश्व पूज्य
तुम ममता का अथाह सागर
तुम ज्ञान की प्रथम
पाठशाला
तुम त्याग की देवी
तुम नेह का भंडार
तुम अपनत्तव की खान
तुम दिनकर सी तेज
तुम निशा सी शीतल
तुम सागर सी विशाल
तुम धरती सी सहनशील
तुम ____________
और भी कुछ
बहुत कुछ
सब कुछ
जो बंधा हूँ
या असक्षम कहने में
फिर कैसे लिख पाउ तुझ पर
हाँ तुम पर.....
क्योकि
तुमने ही तो लिखी है
मेरे अस्तित्त्व की कहानी
सच, माँ...!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________
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