काश...
होती अपनी कोई कहानी
या कहानी जैसी ही
शब्दों की वर्णमाला से
सजते जीवन के कुछ अध्याय
वक्त की उंगलिया थूक लगाकर
पलटती पन्ने
इस कहानी में रोचकता
होती या न होती
पर उपसंहार आते आते
कोई रोता जरूर
जिसको मिला हो दर्द
मुहब्बत में...
और उसके अश्रुओं की कोई भी
बूँद कहानी के नीले अक्षरो
को लाल कर देती
फिर ये कहानी ,सिर्फ कहानी
न होकर
सीख बन जाती
समय के लिए...!!!
--------------------------------------------------------------
_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________
--------------------------------------------------------------
_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें