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सोमवार, 27 जुलाई 2015

कविता-२१५ : "अधेढ़ पुरुष..."

 सच____
ये कुछ ...अधेड़ पुरुष
कालिख पुते बालो पर
यौवन की साख ज़माने वाले
सुबह की भोर से
रात्रि के अंतिम आगोश तक
नीचे से फोल्ड की हुई मोहरी
और सरकते हुए जीन्स से
तबेले से पेट को दिखाते हुये
वाले ये अधेड़
जिंदगी के सरकते हुए पटल
पर _____

चेहरे की झुर्रियों और लटकती
चर्बी को नजर अंदाज कर
नकली दांतो से
नाख़ून चबाते हुए.....

गोल चश्मे में निहारते
उस महिला को
जिसने , आई एम अलोन का
स्टेटस , डाला फेस बुक पर
तांक रहे उसकी प्रोफाइल
और इंतजार में है
कि कब रिकवेस्ट स्वीकार हो
और
घुस जाये इनबॉक्स में
सुन्दर आँखे सुन्दर चेहरे और
अति सुन्दर लेखन
की बात कहके
कर दे ताबड़तोड़ लाइक और
कमेंट....

पाकेट में रखे एनरोयड फ़ोन
की पिंग पोंग
और मोबाइल की स्क्रीन पर
दिन भर चलती उंगलिया
जैसे रेगिस्तान की सुर्ख भूमि पर
लुढक रही हो कोई बूंद ही..

  वाइव्रेट से होते अधकपे हांथो में
छोटा सा मोबाइल डोरी वाला
जिसके सन्देश और
गेलरी को ..
बच्चों से छिपाकर तो कही
अर्धांग्नी को ये कहके
कि फला तस्वीर या प्रोफाइल
कि मेरी मित्र की है ...
जो पूछती है तुम्हारे बारे में ही
कराऊँगा बात तुमसे...

पर अर्धाग्नि .....
इसी मित्रता सम्बन्ध की चाहत में
तड़पती रही आधी उम्र ही
पति से ही
और पति के अलावा अन्य पुरषो
से मित्रता
देता रहा ठोकर उसकी पत्निव्रता को.....

अधेड़ उम्र  में अधेड़ पुरषत्त्व
नहीं दे पाता पूर्णता
उनकी संवेदनशीलता को
और अधेड़ता
अधेड़ ही रह जाती
जिंदगी के कई मायनो में
सच......

कुछ ऐसे ही है ये...
अधेड़ पुरुष...!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________

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